माइक्रोसॉफ्ट कंपनी की Success Story | Microsoft History (1975-2022)

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी:- हाई हैलो नमस्कार दोस्तों, कैसे है आप सब? मैं बहुत अच्छा हूँ। कमेंट बॉक्स में लिख कर के जरूर बताईएगा क्या हाल चाल वैसे एक बात बताइए, क्या आपको भी सपने देखना पसंद है? अगर हाँ, तो आइए आज आपको दो दोस्तों के ऐसे ही एक सपने की कहानी सुनाते हैं।

दो कॉलेज ड्रॉपआउट दोस्तों ने खुली आँखों से एक सपना देखा कि हर ऑफिस की डेस्क पर और हर घर में पर्सनल कंप्यूटर की पहुँच बनाई जाए। उन्होंने इस सपने को पूरा करने में जी जान लगा दी। उनकी मेहनत पक्के इरादे और जुनून ने माइक्रोसॉफ्ट जैसी टॉप टेक कंपनी खड़ी कर दी। हाँ बिलकुल माइक्रोसॉफ्ट जिसने अपनी पहचान कुछ इस कदर बनाई, कंप्यूटर्स का दूसरा नाम ही माइक्रोसॉफ्ट हो गया।

कुछ समय के अंदर ही माइक्रोसॉफ्ट ने ऐसी बुलंदियों छूली की यह सोच पाना मुश्किल हो गया कि अगर टेक वर्ड में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी नहीं होती तो क्या होता?

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी Products and Services

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तो ये तो आप जरूर जानते होंगे कि माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन एक अमेरिकन मल्टीनेशनल टेक्नोलॉजी कंपनी है जो कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कंज़्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, पर्सनल कंप्यूटर्स और रिलेटेड सर्विसेज प्रोड्यूस करती है। ये कंपनी कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की मैन्युफैक्चरिंग और सीलिंग में स्पेशलाइजेशन रखती है। लेकिन इस कंपनी ने इतना बड़ा मुकाम कैसे पाया? इसके फाउंडर्स कौन थे और वो एक छोटे से स्टार्टअप को इस पोज़ीशन तक कैसे ला पाईं?

इस कंपनी की सक्सेस और फेलियर ये सब जानने से पहले माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के बारे में कुछ खास बातें जाननी बनती है। माइक्रोसॉफ्ट वर्ड की लीडिंग टेक्नोलॉजी कंपनीज में से एक है। जिसकी प्रोडक्ट्स में विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम, ऑफिस प्रोडक्टिविटी ऐप्लिकेशंस और अज़ूरे क्लाउड सर्विसेज़ शामिल हैं।

माइक्रोसॉफ्ट का एक्सबॉक्स गेमिंग सिस्टम भी बहुत फेमस है। लिंकडइन न्यूस गिटहब स्काइप टेक्नोलॉजीज ऐसी बहुत सारी कंपनीज माइक्रोसॉफ्ट की सब्सिडी कंपनीज रही है और bing इसका सर्च इंजिन है।

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी Headquarters

Microsoft headquarters

माइक्रोसॉफ्ट का हेडक्वाटर रेडमंड वाशिंगटन में हैं और 96 कन्ट्रीज में इसकी 177 ऑफिस है। इंडिया में माइक्रोसॉफ्ट का हेडक्वाटर हैदराबाद में है और अहमदाबाद, बैंगलोर, चेन्नई, मुंबई और नोएडा सहित 11 शहरों में इसके ऑफिस है। साल 2021 में इस कंपनी की नेट वर्थ वन ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा है, जो इसे वर्ल्ड की वैल्यू ऑफ कंपनीज में से एक बनाती है।

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के वर्ल्डवाइड फुल टाइम एंप्लॉयीज लगभग 1,63,000 है और माइक्रोसॉफ्ट का हर एंप्लॉयी सोफ्टी कहलाता है। कितना कूल नाम है ना सोफ्टी, इस कंपनी का मिशन इस प्लैनेट पर मौजूद हर परसन और हर ऑर्गेनाइजेशन को इंपावर करने का है। और इसकी स्ट्रैटेजी है कि इसे मोबाइल फर्स्ट, क्लाउड फर्स्ट वर्ल्ड के लिए बेस्ट प्लैटफॉर्म्स और प्रोडक्टिविटी सर्विसेज बिल्ड कर सके।

माइक्रोसॉफ्ट के कस्टमर्स के कंज़्यूमर्स और स्मॉल बिज़नेस के साथ साथ वर्ल्ड की बिगेस्ट कम्पनीज़ और गवर्नमेंट एजेंसीज भी है और इस कंपनी का रेवेन्यू यूएस और बाकी कन्ट्रीज में ईक्वली डिस्ट्रिब्यूटेड है। बाकी टेक कंपनीज की तुलना में माइक्रोसॉफ्ट में इनोवेट करने की जो एबिलिटी रही, उसी का रिज़ल्ट रहे MSDOS, विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम, माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस, इंटरनेट एक्स्प्लोरर और Microsoft Surface

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माइक्रोसॉफ्ट कंपनी Achievements

माइक्रोसॉफ्ट-कंपनी-Achievements

माइक्रोसॉफ्ट टेक्नोलॉजी में कितनी अडवांस कंपनी रही है, यह इस बात से साबित होता है की 1994 में पहली स्मार्टवॉच माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने ही बनाई थी, लेकिन तब मार्केट इसके लिए तैयार नहीं था। इसीलिए ये प्रॉडक्ट सक्सेसफुल नहीं हो सका। इतना ही नहीं जिस टैबलेट कंप्यूटर के लिए ऐप्पल को इतनी पॉपुलैरिटी मिली है। उस टैबलेट कंप्यूटर का इन्वेंशन भी माइक्रोसॉफ्ट ने साल 2001 में किया था। लेकिन उसे भी मार्केट का सपोर्ट नहीं मिल पाया, लेकिन फिर भी इन्नोवेशन और माइक्रोसॉफ्ट साथ साथ चलते रहे।

माइक्रोसॉफ्ट कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों के बिज़नेस में इन्वॉल्व है, इसलिए उसे कई दिग्गज tech giant(Big Five) जैसे की गूगल, आईबीएम, एप्पल और oracle और सोनी के साथ कॉम्पिटिशन भी फेस करना पड़ा।

Microsoft Market Value

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इस कंपनी की मार्केट वैल्यू कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अगर किसी ने 1986 में माइक्रोसॉफ्ट आईपीओ के दौरान माइक्रोसॉफ्ट शेयर्स में $1000 इन्वेस्ट किये होंगे तो आज वो पर्सन अपने शेयर्स को 1.6 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा मैं बैच सकता है। काश वो इंसान में होता anyway अब जान लेते हैं माइक्रोसॉफ्ट कंपनी बनने की कहानी और उतार चढ़ाव से भरे इसके लंबे सफर के बारे में।

Microsoft Founders

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माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर थे दो दोस्त बिल गेट्स और पॉल एलन थे। इनका कंप्यूटर्स के लिए क्रेज और टेक्नोलॉजी को लेकर के जो पैशन था उसका माइक्रोसॉफ्ट को इस मुकाम तक पहुंचाने में बहुत बड़ा हाथ रहा।

इनका ये पैशन इतना स्ट्रांग रहा कि माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर जब मिलिनियर बन गए तब भी उनका ये पैशन फीका नहीं पड़ा और देखते ही देखते गेट बिलेनियर भी बन गए। लेकिन बिलेनियर बनने का मतलब ये नहीं होता है की एक पर्सन हमेशा सिर्फ सक्सेसफुल होता रहे और फेल्यर से उसका कोई लेना देना ही ना हो। क्योंकि बिल गेट्स के बिलेनियर बनने का सफर तो फेल्यर से ही शुरू हुआ था।

Traf-O-Data

Traf-O-Data

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी शुरू करने से पहले गेट्स ने पॉल एलन और पॉल गिल्बर्ट के साथ मिलकर 1972 में अपनी पहली कंपनी Traf-O-Data स्टार्ट की। उस टाइम गेट्स केवल 17 साल के थे और एलन 19 साल के। Traf-O-Data कंपनी का पर्पस था रोडवे ट्रैफिक काउंटर से रॉ डेटा को रीड करना और ट्रैफिक इंजीनियर्स के लिए रिपोर्ट तैयार करना।

इस कंपनी को सिर्फ शुरुआती सफलता ही मिल पाई थी, लेकिन इस बिज़नेस की बदौलत गेट्स और एलन को माइक्रोप्रोसेसर को समझने में काफी हेल्प मिली और ये नॉलेज उनकी फ्यूचर सक्सेस यानी माइक्रोसॉफ्ट के लिए बेहद जरूरी थी। इस फेल्यर के बाद इतनी बड़ी सोच रख पाना कि माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी खड़ी की जाए, काफी मुश्किल रहा होगा। आपको क्या लगता है? लेकिन जिसके पास जुनून है उसे अपने फेल्यर को गिनते रहने की बजाय शायद सक्सेस की सीढ़ियां चढ़ते रहने में ज्यादा इंटरेस्ट होता होगा, है ना?

MITS Company

Bill-Gates-and-Paul-Allen-in-MITS-Company

दोनों दोस्तों Bill Gates and Paul Allen ने मिल करके एमआईटीएस कंपनी के लिए काम किया, जो अल्टेयर 8800 बनाती थी। ये पहली कमर्शियल माइक्रो कंप्यूटर थी यानी पर्सनल कंप्यूटर, जिसके लिए उन्होंने एक नई प्रोग्रामिंग लैंग्वेज बेसिक डेवलप की और ये ऑपर्च्युनिटी लेने के लिए उन दोनों पार्टनर्स ने MITS Company से झूठ भी कहाँ कि उनके पास ऑलरेडी बेसिक का वर्जन है, जबकि तब तक उन्होंने उस सॉफ्टवेयर को लिखा तक नहीं था।

लेकिन जब दो महीने बाद दोनों पार्टनर्स एमआईटीएस कंपनी से मिले तो उनकी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज तैयार थी। दोनों पार्टनर इस कंपनी में 7 साल वर्क करते रहे और साथ साथ अपनी पार्टनरशिप को यानी कि माइक्रोसॉफ्ट को भी आकार देते रहे।

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी की शुरुआत

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी

दोनों पार्टनर ने मिलकर 4 अप्रैल 1975 को अल्बुकर्क की न्यू मैक्सिको में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी की शुरुआत की। कंपनी का ये नया नाम माइक्रो कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर से मिलकरके माइक्रोसॉफ्ट बना है।इस कंपनी को शुरू करने के लिए गेट्स और एलन दोनों ने अपना अपना कॉलेज ड्रॉप कर दिया और दोनों यंग कॉलेज ड्रॉपआउट ने अपने स्मॉल कंप्यूटर कंपनी शुरू की।

वैसे बिल गेट्स और माइक्रोसॉफ्ट की सक्सेस को देख करके तो यही सोचा जाता है कि बिल गेट्स इस फील्ड में इस एरिया में सक्सेस पानी को लेकर के काफी कॉन्फिडेंट रहे होंगे, तभी तो उन्हें और उनकी कंपनी को इतनी ज्यादा सक्सेस मिली होगी। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था क्योंकि बिल गेट्स के बचपन का ज्यादातर टाइम भले ही कंप्यूटर के सामने ही गुजरा लेकिन माइक्रोसॉफ्ट जैसी कोई टेक कंपनी शुरू करने का उनका कोई इरादा नहीं था।

Bill Gates As Math Professor

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बिल गेट्स तो मैथमैटिक्स की प्रोफेसर बनने का प्लान बना रहे थे क्योंकि उन्हें मैथ की टफ प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने में बहुत मज़ा आता था। लेकिन उनके ओल्ड फ्रेंड और फ्यूचर बिज़नेस पार्टनर पॉल एलन ने उन्हें अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकलने का चैलेंज दिया और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग को सीरियसली लेने के लिए मना भी लिया।

लेकिन गेट्स इस काम को लेकर काफी टाइम तक सेल्फ डाउट में रहें। उन्होंने अपना फोकस नहीं हटाया और अपने काम को लगन से करते रहे। आखिर माइक्रोसॉफ्ट को 1980’s में सक्सेस मिली तब भी बिल गेट्स के लिए खुद पर यकीन कर पाना आसान नहीं था, बल्कि वो तो बहुत डरे हुए थे और ये सोच नहीं पा रहे थे कि माइक्रोसॉफ्ट एक बिग कंपनी बन गयी है।

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी (1977 to 1981)

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लेकिन जब माइक्रोसॉफ्ट ने रफ्तार पकड़नी शुरू की तो अगस्त 1977 में कंपनी ने अपना पहला इंटरनेशनल ऑफिस जापान में ओपन किया, जिसे ASCII Microsoft नाम दिया गया और 1979 में गेट्स और एलन ने माइक्रोसॉफ्ट को सिएटल में शिफ्ट कर दिया।

फिर 1980 के दौर में वक्त आया पर्सनल कंप्यूटर्स का। इस टाइम ईवीएम ने अपने पहले पर्सनल कंप्यूटर आईबीएम पीसी के लिए माइक्रोसॉफ्ट से ऑपरेटिंग सिस्टम बनाने को कहा। माइक्रोसॉफ्ट ने किसी दूसरी कंपनी से ऑपरेटिंग सिस्टम परचेस किया, उसे मॉडिफाई किया और उसका नया नाम एमएस डॉस रख दिया।

एमएस डॉस 1981 में आईबीएम पीसी के साथ रिलीज हुआ जिसे पीसी डॉस कहा गया। उसके बाद पर्सनल कंप्यूटर्स के ज्यादातर मैन्युफैक्चरर्स ने ऐसे स्टॉक्स को अपने ऑपरेटिंग सिस्टम के रूप में लाइसेंस करवा लिया। इससे माइक्रोसॉफ्ट के लिए ढेर सारा रेवेन्यू जेनरेट हुआ।

First operating system

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MS Dos

पीसी डॉस माइक्रोसॉफ्ट का पहला सबसे बड़ा प्रोडक्ट्स साबित हुआ। उसके नेक्स्ट ईयर लॉन्च हुआ माइक्रोसॉफ्ट का पहला ऑपरेटिंग सिस्टम MS-डॉस। जब 1985 में विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम लॉन्च हुआ तो इस ऑपरेटिंग सिस्टम ने बहुत जल्दी ही पर्सनल कंप्यूटर मार्केट को डॉमिनेट कर लिया।

आज अप्रॉक्समट्ली 90% पीसी पर विंडोज का ही कोई वर्जन रन कर रहा है, वैसे कभी या अभी, हो सकता है आपके पीसी में भी माइक्रोसॉफ्ट का विन्डोज़ ही हो। इस तरह माइक्रोसॉफ्ट ऑपरेटिंग सिस्टम मार्केट में काफी सक्सेस हासिल कर ली थी।

Break of Partnership

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1985 तक इस माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने कोई भी excellent ऐप नहीं प्रोड्यूस किया था। जब कंपनी 1985 में एमएस एक्सेल लाई तो ये ऐप्स सुपर सक्सेसफुल रहा और 1995 में लॉन्च हुआ इंटरनेट एक्स्प्लोरर, इंटरनेट एक्सेस के मोस्ट पॉपुलर टूल्स में से एक बन गया।

माइक्रोसॉफ्ट सक्सेस की सीढ़ियां तेजी से चढ़ता रहा, लेकिन बिल गेट्स और पॉल एलन की पार्टनरशिप उस टाइम ब्रेक हो गयी। एलन ने बिमारी के चलते 1983 में माइक्रोसॉफ्ट छोड़ दिया, लेकिन गेट्स और माइक्रोसॉफ्ट का साथ काफी लंबा चला।

साल 1986 में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी पब्लिक हुई और माइक्रोसॉफ्ट विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम के रिलीज के बाद 31 साल की उम्र में बिल गेट्स बिलेनियर भी बन गए।

Microsoft and Apple

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माइक्रोसॉफ्ट की हिस्टरी मैं एक बहुत इम्पोर्टेन्ट चैपटर ऐप्पल कंपनी का है। आज एप्पल वर्ग के मोस्ट सक्सेस्फुल बिज़नेस में से एक है और माइक्रोसॉफ्ट की स्ट्रॉन्ग कॉम्पिटीटर भी हैं। इनके बीच का कॉम्पिटिशन, कॉनफ्लिक्ट और rivalry काफी लंबे टाइम तक चली, लेकिन जब 1997 में ऐप्पल ऑलमोस्ट bankrupt declare हो गई तब उसका हाथ बिल गेट्स ने ही थामा।

ऐप्पल में इन्वेस्ट करने का मतलब था, अपने सबसे बड़े कॉम्पिटिटर को आगे बढ़ाना। लेकिन बिल गेट्स ने एप्पल कंप्यूटर में 150 मिलियन डॉलर इन्वेस्ट करके नॉन वोटिंग शेयर खरीदे और यहाँ तक की 5 साल के लिए माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के फ्री ऐक्सेस का ऑफर भी दे दिया।

इसी इन्वेस्टमेंट ने एप्पल के लिए लाइफ लाइन का काम किया। बिल गेट्स के इस डिसीजन को बहुत ही क्रिटिसाइज किया गया है क्योंकि अपने कॉम्पिटिटर की मदद कौन करता है? लेकिन ऐप्पल की हेल्प करने के लिए बिल गेट्स के पास एक स्ट्रांग रीज़न था। उस टाइम में माइक्रोसॉफ्ट यूएस गवर्नमेंट के साथ लीगल ट्रबल में थी क्योंकि माइक्रोसॉफ्ट ने कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम मार्केट में अपनी मोनोपोली बना रखी थी।

मार्किट मोनोपोली competitor को नुकसान पहुंचा रही थी और दूसरी कंपनीस को ग्रो करने का चांस नहीं मिल रहा था। तो ऐसे में माइक्रोसॉफ्ट के इस मोनोपोली पर ऑब्जेक्शन खड़े होने लगे थे। इसके अलावा ऐप्पल ने माइक्रोसॉफ्ट पर यह मुकदमा भी ठोक रखा था कि माइक्रोसॉफ्ट ने उसके मैक ओएस के लुक और फील को कॉपी किया है।

इन सारे मामलों के बीच माइक्रोसॉफ्ट की image पर बुरा असर पड़ रहा था। ऐसे में जब स्टीव जॉब्स ने बिल गेट्स से हेल्प मांगी तो बिल गेट्स को अपनी इमेज सुधारने का एक अच्छा मौका मिल गया। अपने स्ट्रॉन्ग कॉम्पिटीटर को डूबने से बचाना माइक्रोसॉफ्ट की इमेज को बेहतर बना सकता था और ऐसा हुआ भी।

ऐप्पल को बचाने से माइक्रोसॉफ्ट पर लगे मुकदमे हट गए और उसकी मार्केट इमेज काफी improve भी हो गयी जो ये कंपनी की सक्सेस के लिए बहुत जरूरी होती है।

Microsoft Success and Failures

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माइक्रोसॉफ्ट की शुरुआत करने से ले करके उसके बहुत सारे ups and downs देखने और चैलेंजेस को फेस करने के बाद साल 2000 में बिल गेट्स माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ की पोज़ीशन से हट गए। लेकिन 2020 तक बोर्ड मेंबर बने रहे। उन्होंने अपनी वाइफ के साथ मिलकर के बिल ऐंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन शुरू कर लिया ताकि पूरी दुनिया की सोशल एजुकेशन और हेल्थ इशूज के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी कर सकें।

बिल गेट्स माइक्रोसॉफ्ट के एक सक्सेसफुल फाउंडर और सीईओ रहे, लेकिन उनसे भी मिस्टेक्स तो हुई, जैसे की उनकी फर्स्ट कंपनी Traf-O-Data कुछ खास कमाल नहीं कर पाई। माइक्रोसॉफ्ट की कुछ बड़ी गलतिया थी की उन्होंने सर्च इंजन डेवेलोप करने का मौका खो दिया और यह मौका गूगल के पास जाने दिया। उन्होंने ऐप्पल को बचाने के लिए उसमें इन्वेस्टमेंट किया और आज एप्पल माइक्रोसॉफ्ट से बड़ी बन गई है। उन्होंने इंटरनेट की पावर को पहचानने में देर कर दी और बाकी कंपनीस को माइक्रोसॉफ्ट से आगे बढ़ जाने दिया।

लेकिन जैसा कि खुद बिल गेट्स खुद कहा करते है कि सक्सेस को सेलिब्रेट करना अच्छी बात है, लेकिन फेल्यर की सीख पर ध्यान देना ज्यादा इम्पोर्टेन्ट होता है। वैसा ही कुछ माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने भी टाइम-टाइम पर किया है। यानी अपनी सक्सेस को विन्डोज़, ऑफिस, Xbox, office 365 , Azure Cloud प्लेटफॉर्म के जरिए सेलिब्रेट भी किया तो माइक्रोसॉफ्ट के Zune, Kin, Windows ME और Microsoft Bob के रूप में मिली फेलियर्स को भी सुधारने पर लगातार काम किया। तभी तो ये कंपनी आज भी टॉप tech कंपनीज में शामिल हैं।

स्टीव एंथनी बाल्मर

Microsoft CEO Steve Ballmer

बिल गेट्स के बाद स्टीव एंथनी बाल्मर ने कंपनी को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का काम किया जो 2000 से 2014 तक माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ रहे। बॉल्मर को 1980 में बिल गेट्स ने ही हायर किया था, जो 1998 में कंपनी के प्रेसिडेंट बने और 2000 में सीईओ।

बाल्मर ने माइक्रोसॉफ्ट में जो कॉन्ट्रिब्यूशन दिया, उसकी बदौलत कंपनी की सेल्स तिगुनी हो गयी और प्रॉफिट दोगुना हो गया। लेकिन बॉल्मर को माइक्रोसॉफ्ट की कोर, पीसी सॉफ्टवेयर, विंडोज और ऑफिस पर बहुत ज्यादा फोकस करने के लिए क्रिटिसिजम भी मिला।

इसके अलावा सक्सेसफुल सॉफ्टवेयर कंपनी को डिवाइस मैन्युफैक्चरर्स में बदलने की कोशिश के लिए भी उन्हें काफी ज्यादा क्रिटिसाइज किया गया। इन सब पर खुद बॉल्मर ने माना कि उनके सारे डिसीजंस तो सही नहीं थे लेकिन उनकी ओवरऑल परफॉर्मेंस अच्छी रही। सीईओ के तौर पर उनके अचीवमेंट में 2001 में माइक्रोसॉफ्ट एक्सबॉक्स को रिलीज करना था और failures में माइक्रोसॉफ्ट का नोकिया के साथ डील करना था।

Microsoft Deal With Nokia

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साल 2012 में माइक्रोसॉफ्ट ने अपना पहला सर्विस टैबलेट जारी करके कंप्यूटर हार्डवेयर बाजार में एंट्री ली। साल 2013 कंपनी ने नोकिया कंपनी के साथ डील की, जो कि, ऐप्पल के किस्से की तरह बिज़नेस की दुनिया में काफी चर्चा में रही। माइक्रोसॉफ्ट ने नोकिया को एक्वायर किया ताकि फीचर फ़ोन की इमर्जिंग मार्केट में अपनी प्रजेंस बिल्ड कर सके। नोकिया के जरिये कंज्यूमर्स को अट्रैक्ट कर सके और यूजर्स को विन्डोज़ बेस्ट डिवाइस पर शिफ्ट किया जा सके।

लेकिन माइक्रोसॉफ्ट यह नहीं सोच पाया कि xiamoi, OnePlusऔर बहुत से स्मॉल प्रोड्यूसर्स बजट प्राइस में ऐन्ड्रॉइड स्मार्टफोन तैयार कर देंगे। और जब नोकिया फीचर फ़ोन और बजट फ्रेंडली स्मार्ट फ़ोन के बीच में कंपैरिजन होगा तो यूसर बजट फ्रेंडली फ़ोन को ही यूज़ करेंगे और ऐसा हुआ भी। इसकी वजह से माइक्रोसॉफ्ट काफी पीछे छूट गया।

माइक्रोसॉफ्ट के मार्केट शेयर गिर गए और माइक्रोसॉफ्ट को अपना एंट्री लेवल फ़ोन बिज़नेस 350 मिलियन डॉलर पर बेचना पड़ा और इस तरह नोकिआ मोबाइल फ़ोन, बिज़नेस को 7.2 बिलियन डॉलर में एक्वायर करने का डिसिजन इस कंपनी की सबसे बड़ी गलती में शामिल हो गया।

लेकिन अपनी मिस्टेक को इम्प्रूव करते हुए माइक्रोसॉफ्ट ने फिर से साल 2019 में नोकिआ से पार्टनरशिप की। इस बार पार्टनरशिप का पर्पस क्लाउड आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स और इंटरनेट ऑफ थिंग्स यानी आईओटी इंडस्ट्रीज में ट्रांसफॉर्मेशन और इन्नोवेशन लाना था।

Satya Nadella (सत्य नडेला)

Satya-Nadella-सत्य-नडेला

साल 2014 में एंथनी बाल्मर ने माइक्रोसॉफ्ट कंपनी छोड़ दी और तब साल 2014 में सत्य नडेला माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ बने जो 1992 से कंपनी से जुड़े हुए थे। वैसे तो नडेला प्रोफेशनल क्रिकेट बनना चाहते थे, लेकिन माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ बन कर उन्होंने टेक्नोलॉजी की पिच पर ऐसी शानदार शॉट्स लगाए कि माइक्रोसॉफ्ट कंपनी फिर से टॉप पोजिशंस में अपनी जगह बना पाई।

कंपनी के सीईओ के तौर पर नडेला पर ये प्रेशर बना रहा की वो माइक्रोसॉफ्ट को फिर से मोस्ट डॉमिनेंट टेक्नोलॉजी कंपनी में शामिल करवाए और नडेला ने ऐसा कर दिखाया। इसके लिए उन्होंने फ्यूचर बिज़नेस क्लाउड कंप्यूटिंग में फंड लगाया और उसे बिल्ड किया। नडेला ने क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे ग्रोइंग बिज़नेस में ज्यादा इन्वेस्टमेंट किया और लिंक्डइन न्यूस और गिटहब जैसी कंपनीज को अक्वायर भी कर लिया।

आज माइक्रोसॉफ्ट का Azure cloud computing system मार्केट में सॉलिड परसेंटेज रखता है और सेकंड पोज़ीशन पर बना हुआ है। जबकि फर्स्ट पोज़ीशन पर ऐमजॉन वेब सर्विसेज ने अपनी पकड़ बना रखी है। तो दोस्तों आज भले ही माइक्रोसॉफ्ट अपने फाउंडिंग फादर्स यानी बिल गेट्स और पॉल इनके साथ नहीं है, लेकिन फिर भी कंपनी का फ्यूचर ब्राइट नज़र आ रहा है, जिसकी वैल्यू वन ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा है।

इस कंपनी को शुरू करने के पीछे बिल गेट्स और पॉल एलन ने जो भी ऐम्बिशस गोल सेट किया था, यानी की हर डेस्क और हर घर में एक पीसी को जगह दिलाना और वो गोल बहुत बड़े लेवल पर अचीव होता हुआ भी नजर आया है।

आज माइक्रोसॉफ्ट विंडो के वन मिलियन से भी ज्यादा पर्सनल कंप्यूटर्स बिज़नेस और घरों में यूज़ हो रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि सपने सच तो होते है, मेहनत रंग लाती है, लेकिन रिस्क लेने की हिम्मत करो अपने डर से जीतो, सक्सेस को सेलिब्रेट करने के साथ फेल्यर से सीखकर आगे भी बढ़ते रहो और हाँ, बदलाव का खुले दिल से स्वागत करो तो दोस्तों आपको माइक्रोसॉफ्ट की ये केस स्टडी कैसी लगी? कमेंट बॉक्स में लिख कर के जरूर बताईएगा ताकि हमें पता चल सके।

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